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तो फिर कृत-कृत्य है जो इन यत्नों को सफल बनाने में व्यय होता है और वह मानव तो देव है जो अपने द्रव्य का इस प्रकार उपयोग कर रहा है। ५ प्राचीन काल में संघ-निष्क्रमण___ अब यहाँ हम आपको प्राचीन समय में श्रीसंघ किस प्रकार निकलते थे ?, उनकी शोभा, प्रतिष्ठा, विशालता एवं प्रभाविकता कितनी सचोट व सजीव होती थी, तथा उनसे इष्ट एवं धर्म के प्रति कितनी गहरी श्रद्धा, अपार भक्ति एवं प्राणी-समाज के प्रति कितना असीम आनन्द, स्नेह एवं प्रेम जागृत होता था ?, यह बतलाने की चेष्टा करेंगे । साथ में ही आपको इन पंक्तियों से भूतकाल के वैभव, गौरव, सामाजिक, राष्ट्रीय, राजनैतिक, धार्मिक, आर्थिक एवं मान सिक स्थितियों का भी भली-भाँति परिचय मिल जायगा।
भगवान् श्रीपार्श्वनाथ के पूर्व का इतिहास हमारे समक्ष नहीं है और जो कुछ उपलब्ध है वह न्यून है । अगर अधिक भी है तो भी इस दृष्टि से हमारे ध्येय की पूर्ति करने में अक्षम है । भग
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