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विशेष महत्व दिया है, कला और समृद्धि दोनों दृष्टियों से स्मृति रूप से आज भी सहस्रों श्रीसंघ प्रतिवर्ष इन तीर्थों की यात्रा को निकलते रहते हैं और इन तीर्थों में अपार धनराशि एकत्रित होती रहती है, जो तीर्थ-मन्दिरों के जीर्णोद्वार में व्यय होती रहती है । सम्राट्-संप्रति, चन्द्रगुप्तमौर्य, कुमारपाल, जावडशाह, कर्माशाह, जगडूशाह, पेथड़शाह, झांझणशाह, वस्तुपालतेजपाल, थीरुशाह आदि महापुरुषोंने कितने संघ निकाले और इन तीर्थों के जीर्णोद्धार में कितना धन व्यय किया यह लिखने की आवश्यकता नहीं। तीर्थों की वर्तमान जाज्वलता को देख कर ही अनु मान लगाया जा सकता है । कहने का आशय यह है कि जैन-तीर्थों में शिल्पकला उत्तरोत्तर निखरती रही है और इसका प्रत्यक्ष प्रभाव हुआ है जैनधर्म का विस्तार और स्थायित्व । ३ यात्रा की आवश्यकता और पारमार्थिक लाभ__ प्राणी एक यात्री है और यह संसार एक यात्रास्थल है । जीवन का एक एक दिन यात्रा का एक एक दिन है । यात्री गृहस्थ बन जाता है जब कि वह एक स्थान पर गृह बाँध कर रहने लग जाता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com