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है । सुदूर विदेशों का विज्ञ समुदाय भी आपकी इस सुधा सिश्चित वैदुष्यमय अमरकृति पर रीझकर आलोकित हो उठा है । इसी तरह आपने संसार में ऐसे कई कार्य किये जिससे आपको ' अलौकिक-विभूति' का परिणायक कहना असंगत न होगा । आप वास्तव में अलौकिक ही थे। संसार में अभी तक आपकी अलौकिकता की किसी भी सहापुरुष के साथ तुलना करना अल्पज्ञता का परिचय देना है। आप में अलौकिकता यही थी कि आपकी प्रभा के प्रादुर्भाव के पूर्व जो लोग व्यर्थ में ही साधुधर्म के नाम पर-साधुधर्म की आड़ में कृत्रिम साधुवेश धारण कर पाखंण्ड रचते थे उनका सर्वदा के लिये आपने पाखण्ड परिमर्दन कर जनता को सच्ची साधुता का मार्ग प्रदर्शित कराया। साधुधर्म को समुज्वलित करने के लिये आपने अनेक शारीरिक पीड़ाएँ सहन करीं, फिर भी अन्तिम ध्येय था आपका विश्वकल्याण, वही हो कर रहा । इस तरह कई अलौकिक कार्य करते हुए यह · अलौकिक विभूति' असार संसार से विलीन हो गई, फिर भी उसकी अमित आभा का आलोक विश्व के कोने कोने में जगमगा रहा है एवं सर्वदा के लिये उस आभा का आदर्शमय आलोक जनता को सत्पथ प्रदर्शित करता हुआ जगमगाता रहेगा। बस, जय बोलो अलौकिक विभूति की जय । इत्यलं पल्लवितेनेति शम् ।
मदनलाल जोशी, व्या० शास्त्री।
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