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के प्रयास अपना अपना महत्वपूर्ण अस्तित्व बताने के लिये बहुत जोरों पर हो रहे हैं और होना भी उचित है । अनेक व्यष्टियाँ ही तो एक समष्टि है। किसी भी एक जाति का इस ओर इस प्रयास में शिथिल रहना आगे लिखे जानेवाले इतिहास के निर्माण में अड़चन पैदा करना है । प्रस्तुत पुस्तक इस दृष्टि से कितनी महत्वपूर्ण है । यह वह ही समझ सकता है जिसने कभी इतिहास के इतिहास पर विचार, मनन किया हो - कलम उठाई हो, इतिहास की अनिवार्य आवश्यकता उपादेयता समझी हो । अगर इसी प्रकार हमारे आचार्य, यात्री एवं मुनिवर अपनी महत्वशाली यात्राओं का प्रकाशन करते रहेंगे तो इतिहास की दृष्टि से ये हमारा महान् उपकार कर रहे हैं और इसी दृष्टि से भविष्य के लिये भी ये महान् सेवा कर रहे हैं । विशेष कर इतिहासकारों के लिये यह बड़ी लम्बी दूर तक सहायक होगा ।
आचार्यदेव - श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराजने ' मेरी गोड़वाड़ - यात्रा' पुस्तक प्रकाशित करवा कर जैन इतिहास की इस दृष्टि से बड़ी सेवा की है। मैं आचार्यदेव की इस ऐतिहासिक पुस्तक का बड़ा समादर करता हूँ । बस, अन्त में इतना और लिख कर विराम लिया जाता है कि सं० १९९९ मगसिरसुदि ७ को भूति से संघ का प्रयाण हुआ, उसके मिति वार मुकाम इस प्रकार हुए
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