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८४] ... मरणमोज । मरणभोज भी घुस गया। जैन शास्त्रोंमें कहीं भी इस प्रथाका समर्थन नहीं मिलता। जैनसमाजमें से इस प्रथाका शीघ्र ही नाश होना चाहिये।
४७-कस्तूरचन्दजी वैद्य-मंत्री जैन विधवाश्रम अकोलाजैनधर्म और जैनाचारकी यह विरोधी प्रथा न जाने जैन समाजने क्यों कर अपना ली ? हमारे भाश्रममें ऐसी अनेक विधवायें हैं जिन्हें मरने पतिका मरणभोज करके बर्बाद होना पड़ा और फिर निराधार होकर मार्गभ्रष्ट होना पड़ा। मगर अभागी जैन समाजकी भांखें ही नहीं खुलतीं।
४८-आयुर्वेदविशारद पं० सुन्दरलालजी दमोहजैनागम और जैनाचारकी दृष्टिसे शुद्धिके लिये भी मरणमोज मावश्यक नहीं है । यह तो मात्र मिथ्यात्व है। इस घातक प्रथाका शीघ्र ही नाश होना चाहिये ।।
४९-५० बाबूरामजी जैन बजाज आगरा-वैदिक धर्मानुयायियों के प्रभावसे जैनोंमें यह प्रथा घुसी है । जैन धर्म और जैनाचारसे इसका कोई संबंध नहीं है । इस ग्रथाने समाजको बेहाल कर दिया है । इसका शीघ्र ही नाश होना चाहिये ।
५०-श्री०शान्तिकुमार ठबली नागपुर-यह प्रथा धार्मिक नहीं किन्तु सामाजिक कुरूढ़ि है। यह निन्दनीय प्रथा है। इसका शीघ्र ही नामनिशान मिटना चाहिये।
५१-पं० रामकुमारजी 'स्नातक' न्यायतीर्थमरणभोजकी प्रथा जैनधर्म और समाजके लिये एक भारी कलंक है। इससे समाजका बहुत पतन हुभा है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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