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________________ मरणमोज । २१-विधवाको धर्मकार्योंसे भी रोक दियाबिजावर स्टेटके एक ग्राममें एक पण्डितजीका स्वर्गवास हुआ । वे बहुत गरीब थे। उनकी विधवा नुक्ता न कर सकी, इसलिये गांवके और आसपासके जैनोंने उसका तमाम व्यवहार बंद कर दिया । कुछ दिन बाद उसी गांवमें जलयात्रा हुई। किन्तु उस विधवाको -मरणभोज न करनेके कारण जलयात्रा-धर्मकार्य में भी शामिल न होने दिया, भाखिर वह गिड़गिड़ाकर बोली कि मेरे पास दो मानी कोदों हैं। इन्हें बेचकर तेरई कर लीजिये । गर मेरे जीवनका कोई सहारा न रहेगा । यह सुनकर एक पण्डितजीको दया आगई और उनने पंचोंको समझाकर उसे जलयात्रामें शामिल होने दिया। २२-मरणभोजमें करुणा-कृन्दन-धर्मरत्न पं. दीपचन्दजी वर्णीने माना अनुभव लिखा है कि " २५ वर्ष पूर्व मैं अपने संबन्धीके एक नुक्ते में गया था । २५ वर्षका जवान कमाऊ लड़का मर गया था। उसकी स्त्रीके जेवर बेचकर तेरई कीगई थी। सब लोग जीमने बैठे । मृतकका बुड्ढा बाप और उसके लड़के भी जीमनेको बैठाये गये । सबने एक एक ग्रास उठाया ही था कि बुड्ढा और उसके लड़के बड़े ही जोरोंमे रो उठे। वे रोते रोते कह रहे थे- 'हाय, चना बर गये, भुनाई लग गई और फारसे हाथ भी बर गये । हम तो सब तरहसे लुट गये । कमाऊ लड़का मर गयो, धरको उप्पर मिट गयो । दवाईमें खर्च हो गये सो कछु न लगी पै बहकी बचोखुचो गानौ भी लुट गयो । हायरे हाय, हम तो सब तरहसे लुट गरे !!! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034960
Book TitleMaran Bhoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherSinghai Moolchand Jain Munim
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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