________________
साधुओं के कष्ट और उनका त्याग
४१
११ चतुर्विध संघ को योजना-साधुओं
के कष्ट और उनका त्याग
अपने सिद्धांतों का प्रचार करने के लिये, उन्हें जन-समाज तक पहुँचाने के लिये महावीर ने साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका इस प्रकार चतुर्विध संघ की स्थापना की थी। इतिहास से पता लगता है कि प्राचीन भारत में अनेक प्रकार के संघ तथा गण मौजूद थे। जैन तथा बौद्ध ग्रन्थों में अठारह श्रेणियों का ज़िकर आता है, जिन में सुनार, चितेरे, धोबी आदि पेशेवर शामिल थे। ये श्रेणियाँ पेशों को लेकर बनी थीं, जाति को नहीं । आजकल की यूनियन या एसोसिएशन की तरह ये श्रेणियाँ होती थीं और राजा तक इनकी पहुँच होती थी। यदि इन के किसी सदस्य के साथ कोई दुर्व्यवहार या अन्याय होता था तो ये लोग राजा के पास जाकर न्याय की माँग करते थे। इसी प्रकार व्यापारियों की एसोसिएशन होती थीं। ये व्यापारी लोग विविध प्रकार का माल लेकर सार्थवाह के नेतृत्व में बड़े बड़े भयानक जंगल आदि पार करते थे। सार्थवाह धनुर्विद्या, शासन, व्यवस्था आदि में कुशल होता था तथा राजा की अनुमतिपूर्वक सार्थ (कारवाँ) को लेकर चलता था । व्यापारियों के ठहरने, भोजन, औषधि आदि का प्रबंध सार्थवाह ही करता था। इसके अतिरिक्त प्राकृत ग्रन्थों में मल्ल गण, हस्तिपाल गण, सारस्वत गण आदि गणों का उल्लेख आता है । मल्ल गण के विषय में कहा है कि इन लोगों में परस्पर बहुत ऐक्य था, तथा जब कोई उनके गण का अनाथ पुरुष मर जाता था तो ये लोग मिलकर उस की अन्त्येष्टि क्रिया करते थे, तथा एक दूसरे की मदद करते थे।" मल्ल क्षत्रियों में जैन तथा बौद्धधर्म का बहुत प्रचार था। इन के बगौछिया
* सूत्रकृतांग चूणि, पृ० २८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com