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________________ हर्षका समय है कि जिन शासनसे चारित्र पात्र मुनियोंका आज स्वतंत्रवाद के समयमें भी मान है। परंतु साथमें इतना अफसोस भी है कि “ साहूण सड्डो राया " इस शास्त्रवाक्य को भुलाकर, श्री ठाणाङ्ग सूत्रमें कहे हुए “ अम्मा पियसमाणे" इस मुख्य अधिकार वाक्यको भी याद न ला कर, जो जो व्यक्तिये श्रमणोपासक कहलाती हुई भी एक दूसरे साधु के पक्षमे पडकर अपने और अपने म ने उन श्लाघाप्रिय मुनियों के ज्ञान दर्शन चारित्रमें वृद्धि के बदले हानि पहुंचात हैं उन गुरुभक्तोको चाहिये कि-" मेरा तेरा " इस भावनाको न रखते हुए सिर्फ गुणग्राहक ही बने रहें । शासनमे एक दूसरे का मतभेद होना स्वाभाविक है, परंतु उस बातका निर्णय करने के बदले पक्षापक्षी के जोशमे आकर शासनमूल विनय गुण को भूल जाना, एक दूसरे के साथ असभ्य अश्लील शब्दोसे पेश आना, यह तो किसी मी तरहसे शासनकी रीति नीति नहीं कही जा सकती । जिस जिन शासन को लगभग आधा संसार मान देता था, जिस के संचालक वीतरागदेव हैं, उस संप्रदायकी स्थिति आज अति शोचनीय हो रही है । बिचारे मिथ्या दृष्टि कहलाते वैरागी लोग तो १०-२० एकठे एक जगह बैठकर बोलेंगे-चालेंगे, खायेंगे-पीवेंगे; धर्म चर्चा करेंगे. परंतु आज एक पिता के पुत्र कहलाते हुए जैन क्षमाश्रमण एक मयानमे दो तलवारो के समान एक उपाश्रय मे न रह सकें, एक मडलीमें आहार व्यवहार न कर सकें, एक दूसरे को रास्ते जाते नमस्कार न कर सकें, खेदका समय है हिन्दु के पास मुसलमान आवे या रस्ते जाता मिले तो वह भी उसको घर आनेपर पानी पिलाता है, रास्ते जाता “ साहिब सलामत " कह कहकर शिष्टाचार करता है, मगर हमारे जैन साधुओंका उतना शिष्टाचार भी नहीं | इससे बढकर शोक और क्या होगा ? ऐसा दशामे माता पिताकी उपमाको धारण करनेवाले श्रावको को फिर भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034952
Book TitleMahavir Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmatilak Granth Society
Publication Year1922
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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