SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञानसागर सूरिजीके मुखसे मांडवगढ के रहनेवाले सुश्रावक संयाम सिंह सोनी ने बडी श्रद्धा भाक्तसे श्री 'मगवती सुत्र' सुना। उस शासनप्रेमी वीरवचनोंके अनुरागीने जहां जहां ' गोयमा ! ' पद आता था वहां वहां एक एक अशर्फि रखकर २६ हजार अशर्फियां खर्चकर संपूर्ण भगवती सूत्र की आराधना की । संग्रामसिंह जब जहां एक सोनामोहर रखता था उस वक्त उसकी माता आधी अशर्फि और उनकी पत्नी एक अशर्फि का चतुर्थ खंड रखती थी | इस प्रकार श्री भगवती सूत्र के सुनने में उन्होंने ६३००० सोनामोहरें चढाई उसमें ३७०००हजार मोहरें और मिलाकर उस संपूर्ण १ लाख द्रव्यसे 'कल्पसूत्र' 'कालिकाचार्य कथा' नामक ग्रंथ सोनहरी अक्षरोसे लिखाकर भंडारोंमे रखाए। यह घटना वि. सं १४५१ में हुई थी । कुमारपाल राजाके स्वर्गवासके बाद जब अजयपालने उत्प्लव मचाया; तब कुमारपालके बनवाये कार्योंका ध्वंस देखकर आम्र भट्ट ने प्राचीन और नवीन जैन ग्रंथोको १०० ऊटोंपर लादकर जयसलमेर पहुंचाया। सुना गया है कि बल्ल मी नगरी के भंगके समय ३८०००० श्रावक कुटुंब और कितनेक धर्माचार्य शास्त्र और जिन-प्रतिमाओंको लेकर मारवाड तर्फ चल निकले। उन्होंने मारवाड मे आकर जोधपुर के जिलेमे जो ' बाली ' गाम कहा जाता है उसको आबाद किया, और अपने प्राणोसे भी प्रिय मानकर शास्त्र और भगवत्पतिमाओंकी रक्षा करत रहे | कुमारपाल राजान कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्रसूरिजी के बनाए हुए (१) अनेकार्थ संग्रह (२) अनेकार्थ कोष ( ३ ) अमिधानचिन्तामणि (४) अभिधानचिन्तामणि परिशिष्ट ( ५ ) अलंकार चूडामणि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034952
Book TitleMahavir Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmatilak Granth Society
Publication Year1922
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy