SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बिनप्रतिमाकी पूजा में धूप-दीप-चंदन-बरास-वास-वाला-कुचीअंगलुहना-पंचामृत-कलस-थाल रकेची चामर चंद्रवा-पूठिया चौकीपानी-पूजारी-आदि अनेक वस्तुयें चाहिये, यह संसारभरके जैन जानते हैं । आक और धतूरेसे जिनप्रतिमा कहीं नहीं पूजी जाती | ३६ हजार मंदिरों की पूजाके लिये कमती कमती प्रति मंदिर १०० रुपया सालाना भी गिना जाय तो भी हिसाब गिननेसे ३६ लाख रुपया वार्षिक खर्च मंदिरोंका आता है यह. कार्य जैन समाजकी भक्तिसे उनकी उत्कृष्ट भावना से सहर्ष हो रहा है, तथापि प्रतिवर्ष नये मंदिरोंकी टिप्पणियाँ तडा मार उपराउपरी आ रही हैं, इससे अधिक लाभ क्या सो हमारी समझमें नहीं आता । जहाँ १० घरोंकी जैनवस्ति है वहाँ ५००० हजारके खर्चसे मंदिर बनवाया जाता है । उस कार्यमें अनेक गामों को दाक्षिण्यतासे कहने कहानेसे साधुओंकी सिफारशोंके कारण शक्तिकेन होने पर भी पैसा देना पडता है । इसके बदले जिस गाममें एक जिन मंदिर है वहां उसीकी सेवाभक्ति नहीं होती तो दूसरा क्यों बनवाया जाता होगा ? जो रुपया उस दूसरे मंदिर में खर्च करना है वह उस पहले मंदिरके निर्वाह के लिये जमा करके उसके व्याज वगैरहसे मूलमंदिरकी आशातना का परिहार क्यों न कराया जाय ? हमने गतवर्ष अनुमव करके देखा कि एक गाममें दो मंदिर हैं वहां प्रतिदिन १० आदमी भी पूजा नहीं करते होंगे इतने में वहां दो तीन और बन रहे हैं । सुना गया है कि उन मंदिरोके तयार होने में करीबन १॥ लाख रुपया खर्च होगा ऐसी हालत में इन्साफ की दृष्टि से देखा जाय तो श्रावक श्राविका रूप दोनों क्षेत्रोंकी कैसी हालत होरही है उधर कोई ख्याल देता है ? अगर श्रावक श्राविका ही नहीं रहेंगे तो उन तुम्हारे बनवाए मंदिरोंको पूजेगा कौन ? दूसरे धर्मो तर्फ दृष्टिपात करते हैं तो साफ तौर पर माल्म होता है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034952
Book TitleMahavir Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmatilak Granth Society
Publication Year1922
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy