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पंद्रह दिन कमती साढे उनतीस केवली अवस्था के कुल ७२ सालकी सर्वांयु पूर्णकर वीर परमात्मा अपापापुरी में आते हैं। योगनिरोध करनेके पहिले अन्तिम धर्मोपदेश को फरमाते हैं । अन्तिम क्रिया जिसका नाम योगनिरोध है उसके बलसे योगातीत हालत को प्राप्त कर विनश्वर शरीर को त्याग कर प्रमु निर्वाण पधारते हैं। गौतम स्वामीका विलाप, इन्द्र और देवोंका घोर शोक, नन्दीवर्धनका रुदन प्रभुका अग्निसंस्कार करके इन्द्रोंका नन्दीवर्धन को दिलासा देकर प्रमुकी दाढाओं को लेना, नन्दीश्वरतीर्थकी यात्रा करके देवदेबियों का अपने स्थानों पर जाना, यह सब निर्वाण कल्याणक की क्रिया है ।
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पहिला कल्याणक आषाढ सुदी ६ दूसरा चैत्र सूदी १३ तीसरा मार्गशीर्षवदी १० चौथा वैशाख सुदी दशमी १० पांचवाँ कार्त्तिकवदी १५ | खुलासा नीचे दर्ज है
( दोहा )
तीस तीस घर केवली, छद्म अधिक कुछ बार | पूर्णायु प्रभु वीर का, बार साठ निरधार ॥ १ ॥ वसुधातल पावन करी, ऊन वर्ष कछु तीस । निकट समय निर्वाण को; जानी श्रीजगदीश ।। २ ।। पचपन शुभफल के कहे, पचपन इतर विचार | प्रश्न करे छत्तीस का, बिन पूछे विस्तार ॥ ३ ॥ ( कव्वाली )
प्रभु श्रीवीरजिन पूजन, करो नरनारी शुभभावे ॥ अ० || किया उपकार जो जगमें, कथन से पार नहिं आवे | तजी भवी मान सब अपना, नमन करी नाथ गुण गावे ||१|| सहस छत्तीस साधवीयां, सहस चउद साधु गण थावे ।
केवली वैक्रिय सत सत सो, वादी सय चार कह लावे ।। २ ।।
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