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मूर्ख मनुष्यों को ठगा, किसीने स्त्रियों को, किसीने बाल और गोपालों को परन्तु तूने तो चतुर मनुष्यों को, और बिबुध कहलाते हुये देवताओं को भी जाल में फंसाया ! अच्छा खद्योत और चन्द्र का प्रकाश सूर्यके मागे कितनी देर ठहरेगा ? । अभी आता हूं, तेरे साथ विवाद करकेतुझे परास्त करता हूं ।
एक म्यान में दो तलवारे, एक ही गुफामें दो सिंह, या एक गगन में दो सूर्य, कभी किसीने देखे या सुने हैं ? |
इस प्रकार विविध आडम्बरों को दिखाता हुआ इन्द्रमूर्ति अपने पांचसो ५०० शिष्यों को साथ लेकर प्रभुके पास आया । प्रभु अपने ज्ञानसे उसका नाम गोत्र और गुप्तरहा हुआ उसके मनका संशय जो कि उसने सर्वज्ञत्व की क्षति के भयसे किसी के पास आज तक जाहिर नहीं किया था उसे भी जानते हैं ।
गौतम आकर जब सम्मुख खडा रहा तब " हे गौतम ! इन्द्रभू त्वं सुखेन समागतोसि ? " इस तरह प्रभु उसको बुलाते हैं । महावीर के मुख से अपने नाम और गोत्र को सुनकर गौतम ने विचार किया, अरे ! यह तो मेरे नाम गोत्र को भी जानता है । अथवा जगद्विख्यात मेरे नाम को कौन नहीं जानता ? अगर यह मेरे मनोगत सन्देह को कहे तो जानूं कि यह सच्चा सर्वज्ञ है ।
गौतम के मनोगत माव को जानकर त्रिकालवित् महावीर देव कहते हैं हे विद्वन् ! तेरे मनमें " जीव है या नहीं ? " इस बात का संशय है और उसका कारण वेदमें रही हुई. -
" विज्ञान घन एव एतेभ्यो भूतेभ्यः समुत्थाय तान्येवाऽनुविनश्यति न प्रेत्य संज्ञास्ति "
और ―" सवै अयं आत्मा ज्ञानमयः " इत्यादि । तथा - " द द द " अर्थात् - दमो दानं दया इतिदकारत्रयं यो जानाति स जीवः ।।
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