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लिये मनुष्य को वह कार्य करना चाहिये कि जिससे वह पुनरागमनसे सदाके लिये मुक्त होकर निर्वाण को प्राप्त हो जाय, अर्थात् सांसारिक कदर्थनाओं से सदा के लिये छूट जाय । यह फल यज्ञों की सबल कियाओं द्वारा अथवा अनाथ पशुओं को निर्दय होकर अग्निमें झोक देने से कमी नहीं मिल सकता ।
हाँ पवित्रतापूर्वक जीवन गुजारने से और वासनाओं के दबानेसे हो सकता है।
राजा और किसान, ब्राम्हण और शूद्र, आर्य और अनार्य, अमीर और गरीब, सबही वीर परमात्मा की शिक्षाओं को प्रेम से सुनते थे, आपके ज्ञानकी प्रभा विजली की तरह मनुष्यों के हृदयपर तत्काल असर कर जाती थी।
जो लोग सिर्फ तमाशा ही देखनेको आते थे, आपके अपूर्वज्ञानके चमत्कार से चकित हो जाते थे । अद्धालुओं की तरह उन मनुष्योंपर भी आपका प्रभाव पडता था |
[॥ परिवार परिचय ।।] परमात्मा महावीर देवने पहले पहल अपापा नगरी में उपदेश किया था, वहाँ इन्द्रभूति १ अग्निभूति २ वायुमृति ३ वगैरह ११ विद्वान् ब्राह्मण यज्ञक्रिया के करने के लिये एकत्र हुए हुए थे, उनको प्रमुने सत्यमार्ग सम झाकर अपने आद्य शिष्य बनाये । ये सर्व पण्डित ४४००--शिष्यों सहित प्रमुके चरणारविन्दोंमें आकर दीक्षित हुए थे।
प्रमु खुद राज्य त्याग कर मुनि हुए थे इसलिये जिन का नाम आगे लिखा जायगा वह चेडा, श्रेणिक, उदायन, वगैरह राजा प्रभुके भक्त बने थे। ___ परमात्मा के संसागसारतादर्शक उपदेशको सुनकर ९९ कोड सोना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com