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३६० समान धर्मि मनुष्यों को व्यापार में लगाकर अपने समान कोटि ध्वज बनाया था ! ! ! वाहरे जगसिंह तेरे होने को धन्य है । तेरे जन्म और जीवितको पुनः पुनः धन्य है ! धन्य है तेरे माता पिता को ।
( ३ ) पाटण मे कुमारपाल के समयमे आभड शाह नामक प्रसिद्ध शाहुकार रहता था उसने एक क्रोड आठ लाख रुपया खर्च कर जिन शासन की शोभा मे वृद्धिकी थी | उसने उसमोटी रकमका अधिकांश सीदाते समान धर्मियों के उपकार में ही व्यय किया था । उस वक्त अभयकुमार जैसे और भी अनेक ऐसे धर्मा मनुष्य पाटण मे
बसते थे ।
(४) मांढवगढ मे जब जैन लोगोकी मरपूर वस्ति थी उस वक्त वहां एक ऐसा रिवाज था कि जो कोई समान धर्मी गरीब हालत मे वहां आता उसे प्रतिघर से एक एक अशर्फि और एक एक लकडी घर बनाने के लिये दी जाती । इस से वह एकही दिनमे दरिद्र को तिलांजली दे कर लक्षाधिपति शाहुकार बन जाता था । विक्रम संवत् १२८३ मे नागपुर से श्री सिद्धाचलजीका संघ आया था । वस्तुपाल तेजपालने उनको बड़े आदर से अपने नगर मे बुलाया और भोजनन्दि से उनके सर्व संघ लोगो की भक्तिसेवा की । इतनाही नहि बल्कि उन सर्व मनुष्यों को उंचे आसन पर बैठाकर मंत्रीराजने अपने हाथ से सब
के पैर धोये |
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वस्तुपाल: वस्तुपालः स स्तुत्यः सर्व साधुषु यह वाक्य सर्वथा सत्य है - सर्वथा यथार्थ है, इस मे अंश
मात्र भी अनृत नहीं ।
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अब सोचना चाहिये कि हमारे नैत्यक आर नैमित्तिक सर्व कार्यों मे हमको यह ही शिक्षा दी जाती है कि " महाजनो येन गतः स पंथा " इस सोनहरी. वाक्य को पुन: पुन: जिह्वा से उच्चारते हुए भी — वारंवार
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