SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ५४ ) लेकिन एक प्रेम का दीपक जलता है भगवान ॥ मोरे मन मंदिर में आन बसो भगवान ॥ क्रोध नहीं है क्लेश नहीं हैं । बगुले का सा भेष नहीं है ॥ छोटी सी एक प्रेमकुटी है प्रेमका है स्थान । मोरे मन मंदिर में आन बसो भगवान ॥ टूटा फूटा यह मन्दिर मेरा । छाया हुआ है घेर अन्धेरा ॥ तुम आओ तो हो उजेला तुम विन है सुनसान ॥ मोरे मन मंदिर में आन बसो भगवान ॥ देखो श्री पार्श्व तणी मूर्ति देखा श्री पार्श्व तणी मूर्ति अलबेलडी उज्ज्वल भयो अवतार रे । मोक्षगामी भव थी उगारजो शिव धामी भव थी उगारजो ॥ मस्तके मुकुट सोहे काने कुण्डलियां | मोक्षधामी भव थीसंभारता । मोक्षधामी भव थी - गले मोतियन केरो हार रे पगले पगले तारा गुणों अन्तर मां विसरे उचाट रे प्राप ना ते दर्शन प्रभु श्रात्मा जगाडिया । ज्ञान दीपक प्रकटाय रे मोक्षधामी भव थीश्रात्मा अनन्ता प्रभू आपे उगारिया । तारो सेवक ने भव पार रे मोक्ष धामी भव थी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034946
Book TitleMahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy