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________________ पशुओं की गर्दनों पर चला करते थे दुधारे । बे मौत बेगुनाह कटा करते थे वेचारे ॥ मंदिर मठों में खू की मचा करती होलियां । यज्ञों में प्राणियों की जला करती टोलियां ॥ भगवान दया कर के जो उनको न छुडाते । दुख दर्द दुनिया का कहो कौन मिटाते ॥ भारत की देवियां बनी थीं पैर की जूती । थी शुद्ध वर्ण वाली बनी जाति अछूती ॥ वीमारी पंडितों की कहो कौन मिटाते । शास्त्रों का सही अर्थ हमें कौन बताते ॥ भगवान जो पा कर उन्हें छाती न लगाते । जो वीर अनेकान्त की बूटी न पिलाते ॥ दुखः ॥ भगवान महावीर जो उपकार न करते । शुद्ध कर्म दया धर्म का उपदेश न देते ॥ भगवान महावीर जो दुनिया में न पाते । दुख दर्द दुनियां का कहो कौन मिटाते ॥ पधारो पधारो पधारो महावीर पधारो पधारो पधारो महावीर अहिंसा का मंत्र सुनादो महावीर निखिल जगत में जिन जो सुहाया। वीर वही मन में अति भाया ॥ दुनिया को फिर से सुनादो महावीर, सुनादो सुनादो॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034946
Book TitleMahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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