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(४५) प्रभु पूजन मैं चालियो घिस केसर घनसार । नव अंगे पूजा करूं भव सायर पार उतार । जिवडा जिनवर पूजिये पूजा ना फल जाय । राज नमें प्रजा नमे प्राण न लोपे कोय ॥ कुम्भे बांध्यो जल रहे जल बिन कुम्भ न होय । ज्ञाने बांध्यो मन रहे गुरु बिन ज्ञान न होय ॥ गुरु दीपक गुरु देवता गुरु बिन घोर अन्धार । जो गुरु वाणी वेगडा रडवडिया संसार ॥ प्रभुजी फूलां केरा बाग में बैठा श्री महाराज । ज्यू तारा बिच चन्द्रमा ज्यूं सोहे महाराज ॥
तर्ज-आजा मोरी बरबाद.. गा ले....''गाले प्रभु गुणगान मोहब्बत से पियारे । है वो ही जो बिगडी हुई तदबीर सुधारे ॥ गाते ही न हो शुष्क कभी जीवन में प्राशा । . जिनके गुणों में लग गये शुभ भाव हमारे ॥ है वो ही जो बिगडी हुई तदबीर सुधारे ॥१॥ श्रमण महावीर हमें बचाना है लेकिन । गाते हैं तेरे गुण को गावेंगे पियारे ॥ है वो ही जो बिगडी हुई तदबीर सुधारे ॥गाले ॥२॥ श्रात्म कमल में तेरे चरणों का सहारा-चरणका सहारा ।
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