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________________ ( ४४ ) देख्यो सुन्दर देदार करो पार पार पार ॥ तारी मूर्ति मनोहार हरे मन ना विकार । खरो हिया नो हार बन्दु वार पार वार ॥ श्राव्यो देरासर मोझार को जिनवर जुहार । प्रभु चरण अाधार करो सार सार सार ॥ प्रात्म कमल सुधार तारी लब्धि छे अपार । एनी खूबी नो नहीं पार विनति धार धार धार ॥ सरस शांति सुधारस सागरम् शुचितरं गुणरत्न महागरम् । भविक पंकज बोधि दिवाकरम् प्रतिदिनम् प्रणमामि जिनेश्वरम् ॥ शीतल गुण जेमा रह्यो शीतल प्रभु मुख अंग । यात्म शीतल करवा भणी पूजा प्रहरिया अंग ॥ प्रभु दर्शन मुख सम्पदा प्रभु दर्शन नव निद्ध । प्रभु दर्शन थी पामिये सकल पदारथ सिद्ध ॥ भावे भावना भाइये भावे दीजे दान । भावे जिनवर पूजिये भावे केवल ज्ञान ॥ प्रभू नाम की औषधि खरा मन से खाय । रोग पीडा ब्यापे नहीं महा रोग मिट जाय ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034946
Book TitleMahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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