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________________ (५५) नामसे आज उन्ही आचार्योंकी अविच्छन्न परम्परा चली आति है इस पार्श्वनाथ प्रभुकी परम्परामें छटे पाट श्री रत्नप्रभसूरीसे उपकेश गच्छ एसा नाम हुवा है बाद मे उदयपुर रांणाने इस गच्छ के आचार्यों को 'कमला' खीताब दीया है इस कमला विरूद और उपकेश गच्छ के किंकर मुनि ज्ञानसुन्दरने भव्य जीवोंके प्रतिबोधहितार्थ के लिये इस कथाका सरल ओर सादी भाषामें अनुबाद कीया है जिसे हमारे मारवाडी भाह भी इसे लाभ उठा सके इत्यलम् मतिदोष दृष्टिदोष के तथा मेरी मातृभाषा मारवाडी होने के कारण अशुद्धि या न्यूनाधिक विवेचन करनेमे आया हो तो मे अन्तकरणसे मिच्छामि दुष्कृत देता हुं ओर सजन पुरुष कोइ तुटीकी मुझे सूचना देंगा तो मे उपकारके साथ स्वीकारकर वितोयावृत्तिमें सुधार दुगा शान्ति ३। हितबोध । ॥१॥ ॥२॥ सरस्वतिके भण्डार कि, बडी अपूर्व वात। न्यु खरचे त्युं त्यु बडे, विन खरच्यां गट जात समजदार सुजाण, नर अवसर चुके नहीं । अवसरको आसाण, रहे घणा दिन राजिया कहो नफो कोण काढीयो, लुचों पले लगाय । हिंग तणे संग हालीयो, मृग मद मजो गमाय ज्यारो मन्त्र जल माय, सल त्यासुमोटी करे । वे जरा मूलसे जाय, राम न राखे राजिया शठ समामे बेठतों, पत्त पण्डितकि जाय । पकण वाडे किम बरे, रोझ गधेडो गाय ॥३॥ ॥४॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034945
Book TitleMahasati Sur Sundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1924
Total Pages62
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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