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________________ (४७) द्रव्यसे हमारे बहुत द्रव्य हो गया है अब हमारा अपराध माफ कर न्याजसे आप अपनि रकम ले लिजिये! इतनेमे तो समुद्रके समाचार मिले कि जो समुद्र में जाहजो दुबी थी वह जाहनो अन्य वैपारीयोकि थी सेठजी कि जहाजोतो दिसावरमे गहथी वह माल वे. चके पुनः किरियाणा वरके जाहाजो दरियावके कीनारे आ पहुंची है इस पत्रोको तो सेठजी ओर सेठजीके पुत्र वाच रहे थे इतनेमे • पहलेके सब गुमास्ता आये ओर अर्ज करी की हे सेठ साब आपके संकटमे हम बहुत दुःखी थे आज तक हम सब लोगोंने घरकी खरची खाइ है परंतु कीसी दुसरेकी नोकरी हमने नही करी है कारण हम बडी इज्जत आबरूसे रहे हुवे अब आपके सिवाय कीसकि नोकरी करे वह सुन बडेही आदरके साथ सेठजी उसे पुनः गुमास्ता रख अपने अपने कामपर भेज दीयो, नगरमे राजमे तेजमे पंचमे पंचायतिमे वीणज्य वैपारमे सेठजीका मान, प्रतिष्ठा आदर सत्कार पहलेसे भी अधिक बड गया था पूर्वोपार्जित शुभ कर्मोका अनुभव करते हुवे सेठजी बहुतसे निर्धार अनाथ गरीबोको गुप्त सहायता दे रहेथे साधु साध्वी श्रावक श्राविका इस च्यारे तीर्थकी सेवा जैनतीर्थ जैनमन्दिरकी भक्ति ज्ञानाभ्यासके लिये पाठशाला विद्यालया और दानशालादिसे खुब पुन्य संचय कर रहैथे कारण पुन्य पापका अनुभव सेठजीने ठीक कर लिया था. कश्चनपुरके कीतनेक लोग वापिस कञ्चनपुर गये राजासे सब हाल कहा इससे राजा और भी खुशी हुवा कि बराबरीकाको पुत्री देना इस्मे कोह अधिकता नही है परन्तु एसे भाग्यशालीको देणेमेही कन्याकि कसोटी होती है, यहाँ आनन्द मंगलमें समय जा रहाथा. कुंवरजी कि आज्ञासे नापित कि निजर केर माफ कर दी गई थी. उस सुअवसरपर भी मजगत्सुन्दराचार्य पांचसो मुनियों के परिवारसे प्रामानुग्राम विहार करते हुवे चम्पानगरी के पूर्णभद्रोपानमे विराजमान हुवे माचार्य श्री व्यार झान चौदा. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034945
Book TitleMahasati Sur Sundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1924
Total Pages62
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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