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________________ (४२) मेहरबानी कर शीघ्र विदा कर दीजिये कारण कुलीन पुत्रों का यह फर्ज नही है कि बापके बुलाने पर भी न जावे दरबारने बहुत समजाया परन्तु वहां रहना कीसीको था. कुंवरजीने सोचा को यहां तक तो अपनी माया वृति चलगइ सब कार्य सफल भी होगये अगर ज्यादा ठेरे और राजसुत्ताको कबी जवानी के कारण काम संताने लग जावे तो इतना दिनोकि सब कारवाइ निष्फल हो जावे ज्यादा ताकीद करनेसे राजाने तैयारी करनि सरू करी जीस्मे हस्ती, अश्व रथ सेजगाडीयों पीजस पालखीयो पैदल संख्याबन्ध लावलस्कार फोज नगारे नीसान रत्न जेवर जबरायत रोकड इतना तो माल दीया कि कुंवरजी रहस्तेमे खुब खावे खर्चे दान करे तो भी उस्का अन्त न आवे । शुभ महुर्त अच्छे शुकन के साथ कुँवरजी को रवाना करते समय जो नीजरांणेमे कुँवरजीने लाल दीथी वह दरबार वापिस सीखमें देदी थी एवं सातो. लालो कुँबरजीके पास आगइ थी राजा प्रजा मब नागरीक लोक कुँवरजीको पहुंचानेको गये संसारमें रहे हुवे जीवोंको सजनोका विरह बहुत ही दुष्कृत है सब लोगोके नेत्रोसे आंसु पडना सरू होगया था महारांणीजी अपनि प्यारी पुत्रीको हित शिक्षा दे रही थी कि हे पुत्री ! अब तुं अपने सासरे जाती है तो वहांपर अपने सासु सुसुराओका विनय-भक्ति करना देरांणी जेठांणी नणंद आदिसे मधुर बोलना सबका मनको प्रसन्न करना तुमारे पतिके गुप्त कार्य रहस्य कार्य विनय सेवा भक्ति कर उनोको संतुष्ट करना तुमारे राजमें अगर कोई भी दुःखी हो उसे सुखी करना देव दर्शन. गुरुभक्ति साधर्मीयोसे वात्सल्यता ओर सुपात्रदान सदैव करती रहना गरीब अनाथकी सारसंभाल लेना बडा होने. का कारण यह ही है इत्यादि नेत्रोसे आंसु निकालती हितशिक्षा दे बाइको विदा करी राजा प्रधान ओर नगरके लोग बहुत दुर तक पहुंचानेको गये बाद अपना प्रेम स्नेह दरसाता हुवा वापिस www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034945
Book TitleMahasati Sur Sundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1924
Total Pages62
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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