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इस तरफ लक्ष्य खींचते और चेतवणी करते हैं कि वे इनका जीर्णोद्धार कराके निजोपार्जित लक्ष्मी का लाभ लें। क्योंकि
आठ नये मन्दिरों के बनवाने से जितना लाभ (पुण्य) होता है, उससे भी अधिक पुण्य एक जीर्ण मन्दिर के उद्धार कराने से होता है । ऐसा शास्त्रकार महर्षी फरमाते हैं, अतएव श्रीमानों को इस तरफ विशेष ध्यान देना चाहिये । अस्तु.
श्रीमुनिसुन्दररचित गुर्वावली से पता लगता है कि विक्रम सं० १२५ में मंत्री नाहड (प्रथम) ने यहाँ एक महावीर-मन्दिर बनवाया था और उसकी प्रतिष्ठा तपागच्छीय श्रीवृद्धदेवमूरिजी महाराजने की थी। यह मन्दिर इस समय कोरटाजी में नहीं है और न इसके खंडेहर का ही पता है। संभव है कि जो इस समय केदारनाथ के नाम से पहचाना जाता है वही प्राचीन जमाने में मंत्री नाहड़ (प्रथम) कारित महावीर-मन्दिर हो । वर्तमान में यह मन्दिर जैनेतरों के अधिकार में है और इसकी बनावट जैन शिल्पकारी की है, इसीसे उपरोक्त अनुमान करना निष्फल नहीं हैं।
प्राचीन जमाने में कोरंटक नगर में मुहल्लेवार चोराशी जिनमन्दिर थे ऐसी किंवदन्ती प्रचलित है। यह किंवदन्ती सर्वथा असत्य नहीं है, किन्तु इस में बहुत कुछ सत्यांश है । यहाँ की जमीन से कई छूटी छवाई सर्वाङ्ग सुन्दर जिन प्रतिमाएँ निकलती हैं और अखंडित तोरण भी यत्र तत्र जमीनसे मिलते हैं जो कोस्टाजी में अनेक मन्दिर होने के अस्तित्व को सिद्ध करते हैं।
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