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(१८) पंडित श्री ५ श्री श्री जयविजयगणिना उपदेशथी मु० जेता पुरासिंग भार्या, मु. महारायसिंग भा०, सं० बीका, सांबरदास. को० उधरणा, मु. जेसंग, सा० गांगदास. सा. लाधा, सा० खीमा, सा० छांजर, सा० नारायण, सा० कचरा प्रमुख समस्त संग भेला हुइने श्रीमहावीर पवासण बइसार्या छे. लिखितं गणि मणिविजय-केसरविजयेन । बोहरा महवद सुत लाधा पदमा लखतं. समस्त संघनई मांगलिकं भवति, शुभं भवतु."
इस लेखोक्त महावीर-प्रतिमा भी शिखा, कान, नासिका, लंछन, परिकर, हस्तांगुली और चरणांगुलियों से खंडित है, अतः अपूज्य होने से उसके स्थान पर नवीन महावीर प्रतिमा सं. १९५९ वैशाखसुदि पूर्णिमा के दिन अंजनशलाका करके महाराज श्रीविजयराजेन्द्रसूरीश्वरजीने स्थापन की है और प्राचीन स्मृति के लिये पं० जयविजयगणि स्थापित पुरानी महावीर प्रतिमा को मंडप के एक ताक में कायम रक्खी है।
प्रश्न-अंगविहीन प्रतिमा को भी उठा
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