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बिक्रम संवत् १०८१ के आसपास ‘सत्यपुरीयश्रीमहावीरउत्साह ' बनाया है, जो अपभ्रंस प्राकृत भाषा में है। उसकी १३ वीं गाथा के प्रथम चरण में 'कोरिंट-सिरिमाल-धारआहडु-नराणउ ' इस कडी से दूसरे तीर्थों के साथ साथ कोरटा तीर्थ का भी स्मरण किया है।
तपागच्छीय सोमसुन्दर सूरिजी के समयवर्ती कवि मेघ (मेह) ने सं० १४९९ में रची तीर्थमाला में · कोरटउं' पं० शिवविजयजी के शिष्य कवि शीलविजयजीने सं. १४४६ में रची तीर्थमाला में 'वीरकोरटिं मयालु' और सं० १७५५ के लगभग श्रीज्ञानविमलसूरि रचित तीर्थमाला में ' कोरटइं जीवितसामी वीर' इन वाक्यों से इस पवित्र तीर्थ का स्मरण करके नमस्कार किया गया है।
इससे जान पडता है कि विक्रम की ११ वीं शताब्दी से १८ वीं शताब्दी तक यहाँ अ
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