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१ श्री महावीर-मन्दिर
यह मन्दिर अन्दाजन २४०० वर्ष का पुराना है। इसकी प्रतिष्ठा पार्श्वनाथसन्तानीय श्री रत्नप्रभसूरीश्वरजी महाराजने श्रीवीरनिर्वाण से ७० वर्ष बाद ओशियाजी के महावीर-मन्दिर के साथ दो रूप करके एक ही लग्न में की थी।
विक्रम की १३ वीं शताब्दी में मंत्री नाहड के पुत्र ढाहल(ढाकल)जी का, और १७ वीं सदी के आरम्भ में किसी-बीरु नामक श्रावक का; इस प्रकार इसके दो जीर्णोद्धार भी हो चुके हैं । परन्तु अब यह मन्दिर खड-विखड होने को आया है, इसलिये वर्तमान में इसका जीर्णोद्धार होने की अत्यावश्यकता है।
श्री कोरटाजी-तीर्ध ।
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