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( ८२) मा, लेकिन आज से उस की पूजा करना छोड दो । श्रावकोंने गुरुमहाराज के कहने से चंडिका की पूजा करना छोड दी। इससे वह आचार्य महाराज के ऊपर अत्यन्त कुपित हुई और आचार्य पर लांग देखने लगी। एक दिन आचार्य रत्नप्रभसूरिजी संध्या के समय ध्यान रहित अवस्था में बैठे हुए थे, देवीने लाम पाकर उन के नेत्रों में पीडाशुरू की। आचार्यने अपने ज्ञानवल से दैवीमायाजान कर चण्डिका को मंत्रों से इस प्रकार खाली कि वह मारे पीडा के जोर से रोती हुई बोलने लगी किस्वामिन् ! मरती हूं, मेरी रक्षा करो, मुझे कृत अपराध की क्षमा दो, आयंदे से मैं ऐसा अ. पराध कभी नहीं करूंगी । आचार्यने कहा कि तुझे ऐसा करने का कारण क्या था ?, देवीने माफी मांगते हुए कहा-प्रभो! आपने मेरे से. वकों से मेरी पूजा बन्द कराके उनकी रक्षा की, इससे मुझे क्रोध आ गया। आचार्यने
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