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जिस दिन और लग्न में यहाँ की प्रतिष्ठा का मुहूर्त है, वही कोरंटक के मन्दिर की भी प्रति ठा का मुहूर्त है, अतएव यहाँ का कार्य छोड़ कर मेरा वहाँ जाना नहीं बन सकता। यह सुन कर संघ के तरफ से आये हुए श्रावक बहुत चिन्ता निमग्न हुए। उन पर करुणा ला. कर आखिर रत्नप्रभसूरिजीने उन श्रावकों को कहा कि-तुम जल्दी जाओ, प्रतिष्ठा के योग्य सभी सामग्री तैयार कर रखने को संघ से कह देना । मैं यहाँ की प्रतिष्ठा का कार्य सिद्ध कर के आकाशमार्ग से आ कर, इसी लग्न में कोरंटक के मन्दिर-प्रतिमा की प्रतिष्ठा कर दंगा। संघ के भेजे हुए श्रावक प्रसन्न हो और वन्दन करके शीघ्र ही कोरंटक पहुंचे । उन के कहे अनुसार प्रतिष्ठा की सब सामग्री तैयार की । इधर ऊकेशनगर में महावीर-प्रतिमा की स्थापना करके, आकाशमार्ग से शीघ्र ही कोरं
१ किसी किसी जैनपट्टावली आदि में मूलरूप से ऊकेशनगर में और वैक्रियरूप से कोरंटनगर में प्रतिष्ठा की ऐसा लिखा है।
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