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________________ (७५) साथ आकाश-मार्ग से इसी तरफ होकर निकला, नीचे पांचसौ मुनिमंडल सहित स्वयम्प्रभाचार्य को देख कर, राजा मणिरत्न सपरिवार नीचे उतरा और वन्दना करके धर्मोपदेश सुनने की इच्छा से आचार्य के सम्मुख बैठा । आचार्य महाराजने संसार से विरक्त होनेवाली इस प्रकार की धर्मदेशना दी कि जिसे सुनते ही मणिरत्न पारमेश्वरी दीक्षा लेने को तैयार हो गया, और शीघ्र ही अपने पुत्र को राज्यासन पर बैठा कर, पांचसौ विद्याधरों के साथ स्वयम्प्रभाचार्य के पास दीक्षा ले ली। क्रमशः गीतार्थ हो जाने पर स्वयम्प्रभाचार्यने मणिरत्न को आचार्य पदवी देकर उसका नाम श्रीरत्नप्रभसूरिजी कायम किया। बाद में श्रीरत्नप्रभसूरिजी पांचसौ मुनिमंडल के परिवार से विचरते हुए, ऊकेशनगर में पधारे, यहाँ के लोगोंने आपकी कुछ भी परिचर्या (सेवा) नहीं की। आपके इस अपमान को देख कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034926
Book TitleKortaji Tirth ka Itihas Sachitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSankalchand Kisnaji
Publication Year1930
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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