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दो शब्द.
प्यारे खर-तरो ! आज से .५० वर्षपूर्व आपके पूर्वज अन्य गच्छवालों से मिल झूल कर चलते थे उस समय अन्य गच्छवाले आपके पूर्वाचार्यों के प्रति कैसी भक्ति एवं किस प्रकार पूजा करते थे ? और आज आपकी कुट नीति के कारण वही लोग आपसे तो क्या पर आपके पूर्वाचार्यों के नामसे किस प्रकार दूर भाग रहे हैं । इसका कारण क्या है जरा सोचो।
आपके अन्तिम आचार्य तिलोक्यसागरजी म० तथा श्रीमती साध्वी पुन्य श्रीजीने अन्य गच्छवालों के साथ किस प्रकार प्रेम रखकर उनको अपनी और आकर्षित किये थे । जब आज आप अन्य गच्छवालों के साथ द्वेष रख समाज का संगठन तोड़ने की कोशीस कर रहे हैं ? शायद ही ऐसा कोई स्थान बच सका हो कि जहां आपके उपदेश का अमल करनेवाले खरतरों का अस्तित्त्व हो और वहां आपने राग द्वेष के बीज न बोया हो ?
खैर ! इतना होनेपर भी आप अपना अपने गच्च का और अपने पूर्वाचार्यों का मान प्रतिष्ठा गौरव कहां तक बढाया । कारण खरतरगच्छवालें तो श्रापके आचार्यो की भक्ति पूजा करते ही थे और आज भी कर रहे हैं इसमें तो आपकी अधिकता हैं ही नहीं । जब अन्य गच्छवाले आपके पूर्वजों प्रति पूज्यभाव रक्ख सेवा पूजा करते थे आज उन्ही के मुंहा से आप अपने आचार्यों के अपमान के शब्द सुन रहे हो । इसमें निमित कारण तो आप ही हैं न ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com