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आज भी विद्यमान है। कइ खरतर साधुओंने तीर्थोपर इसी विडम्बना के कारण जूते भी खाये हैं और भी इनकी व्यभिचार लीला से ओतप्रोत अनेक पत्र भी कई स्थानोंपर पकड़े गए हैं । खरतरों में केवल साधु ही इस कोटिके नहीं पर इनकी साध्विये तो इनसे भी दो कदम आगे बढ़ी हुई है। इतना ही क्यों पर ऐसे कार्यो के लिए तो यदि इन साध्वियों को उन साधुओं के गुरु कह दिया जाय तो भी कुछ अतिशयोक्ति नहीं है । कारण कई साध्वियोंने तीर्थों पर अपना उदर रीता किया है तो कईएकोंने साधुवेश में गर्भ धारण कर गृहस्थ वन अपने उदर का बजन को हलका कर पुनः खरतरों के शिरपर गुरुत्व धारण किया हैं। कईएक साध्विएँ गृहस्थों के यहां से सोनो चांदी के डिब्बे उठा लाई तो कइएक साध्वियों की रकमें गृहस्थ हजम कर गये हैं । इत्यादि हजारों दोषों के पात्र होते हुए भी अपने कलंक को पब्लिक में प्रसिद्ध कर वाने की प्रेरणा सिवाय इन खरतर जैसे मृों के कोन करता है । अतएव खरतरों से मेरी सलाह है कि गच्छ कदाग्रह की वजह से थोड़े बहुत खरतर जानबूझ कर भी तुम्हारे दोषों को जहर के प्यालों की भाँति पी रहे हैं । पर तुम दूसरों की छेड़छाड़ कर अपनी रही सही कलुषित इजत को नीलाम करवाने की चेष्टा न करो! इसीमें तुम्हारा जीवननिर्वाह है। शेष फिर कभी समप मिलने पर......
आप का अन्तरभेदी, " एक अनुभवी"
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