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लम्बे चौड़े विशेषणों से कहने की जरूरत नहीं है। थली के अनभिज्ञ मोयों को ब्रम में डालने का अब जमाना नहीं है। एक खरतरगच्छ में हो क्यों पर मेरे पास जो ३०० गच्छों की लिस्ट है उन सभी गच्छों में जो जो प्रभाविक आचार्य हुए हैं वे सब पूज्यभाव से मानने योग्य हैं; किन्तु आप का हृदय इतना संकीर्ण क्यों है कि जो आप दृष्टिराग में फँस कर केवल एक खरतरगच्छ के आचार्यों की ही दुन्दुभी बजा रहे हो । आप के इस एकान्तवादने हो लोगों को समीक्षा करने को अवकाश दिया है । भला, आप जरा एक दो ऐसे प्रमाण तो बतलाईये कि खरतरगच्छ के अमुक आचार्यने जनोपयोगो कार्य कर अपनी प्रभाविकता का प्रभाव जनता पर डाला हो? जैसे किः१-आचार्य रत्नप्रभसूरिने उपकेशपुर में राजा प्रजा को जैनी
बना कर महाजनसंघ की स्थापना की। इसीप्रकार यक्षदेवसूरि, ककसूरि, देवगुप्तसूरि, सिद्धसूरि आदिने
अनेक नरेशों को जैन बनाये । २-आचार्य भद्रबाहुने मौर्यमुकुट चन्द्रगुप्तनरेश को प्रतिबोध
कर जैन बनाया । ३-आर्यसुहस्तीने सम्राट सम्प्रति को प्रतिबोध कर जैन
बनाया। ४-आर्यसुस्थोरिने चक्रवर्ती खारवेल को जैन बनाया । ५-सिद्धसेनदिवाकरसूरिने भूपति विक्रम को जैन बनाया। ६-आचार्य कालकसूरिने राजा धूवसेन को जैन बनाया। ७-आचार्य बप्पभट्टसूरिने ग्वालियर के राजा आम को
जैन बनाया।
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