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तपागच्छवालोंनेही बादशाह का मन जैनधर्म की ओर आकर्षित किया । बाद में जिनचन्द्रसूरि और बादशाह की भेट हुई तथा जो मान सन्मान मिला था वह तपागच्छीय आचार्यो की कृपा का ही फल था । इस से खरतरों को तो ऊल्टा तपागच्छवालों का उपकार समझना चाहिए ।
बादशाह अकबर स्वयं मुसलमान था और मुल्ला था बादशाह का गुरु ? क्या जिनचन्द्रसूरि या दूसरों की यह शक्ति थी कि वे सभा में उनका अपमान कर सकें ? । बादशाह अकबर को ३०० वर्ष हुए हैं और उस समय का इतिहास ज्यों का त्यों आज उपस्थित है। क्या खरतर लोग उसमें इस बातकी गंध भी बता सकते हैं कि अमुक समय ब जगह यह किस्सा बना था। जब यह बात ही कल्पित है तो ऐसे दृश्य का चित्र बनाकर भद्रिक जीवों को भ्रम में डाल अपने प्राचार्य की झूठी प्रशंसा करने की क्या कीमत हो सकती है ? । हां, जरा देरके लिए दुनियां उसे देख भले ही ले, पर समझेगी क्या यही न कि ? चित्र बनाने और बनवानेवाले दोनों अक्ल के दुश्मन हैं।
हाल ही में श्रीमान् अगरचन्दजी नाहटा बीकानेरवालोंने जिनचन्द्रसूरि नामक पुस्तक लिखी है, उसमें जिनचन्द्रसूरि
और बादशाह अकबर का सब हाल दिया है, पर जिनचंद्रसूरिने मुल्ला की टोपी उडाई इस बात का जिक्र तक भी नहीं किया है । नाहटाजी इतिहास के अच्छे विद्वान् हैं । यदि ऐसी टोपीवाली बात सत्य होती तो वे अपनी पुस्तक में लिखने से कभी नहीं चुकते । यद्यपि नाहटाजी उपकेशगच्छोय श्रावक हैं फिर भी आप को खरतरगच्छ का अत्यधिक मोह है । इससे आपने अपनी "जिनचन्द्रसूरि" नामक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com