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समीक्षा-जिनदत्तसूरि के पूर्व तीर्थङ्कर, गणधर और सैंकडों आचार्य हुए पर किसीने स्त्रीपूजा का निषेध नहीं किया । इतना ही क्यों पर जिनदत्तसूरि के गुरु जिनवल्लभ सूरिने भी कई तरह की स्थापना उत्थापना की, परन्तु स्त्रियों को प्रभुपूजा करने से तो उन्होंने भी निषेध नहीं किया । फिर समझ में नहीं आता है कि जिनदत्तसूरि को हो यह स्वप्न क्यों आया कि जो उन्होंने स्त्रीपूजा निषेध कर उत्सूत्र की प्ररूपणा की। शायद किसी औरत के साथ दादाजी का झगड़ा होगया हो और दादाजीने आवेश में आकर कह दिया हो कि जाओ तुमको प्रभुपूजा करना नहीं कल्पता हैं। बाद लकीर के फकीरोंने इस बात को प्राग्रह कर पकड़ ली हो जैसे कि कोई २ हटधर्मो व्यक्ति खरपुच्छ पकड़ने पर नहीं छोड़ता है तो ऐसा संभव हो सकता है। ___यदि ऐसा नहीं हुआ हो तो शास्त्रों में स्नापूजा के खुल्लमखुल्ला पाठ होने पर भी फिर यह अर्द्ध ढूंढियों की प्ररूपणा दादाजी कभी नहीं करते और शायद दादाजीने किसी द्वेष के कारण यह कर भी दिया तो, पिछले लोग सदा के लिए इसको पकड़ नहीं रखते । अब हम कतिपय शास्त्रों के प्रमाण यहाँ उद्धृत करते हैं।
१-श्री ज्ञातासूत्र में महासती द्रौपदीने जिनपूजा की है। २-उत्तराध्ययनसूत्र में महासती प्रभावतीने प्रभुपूजा
की है। ३-श्री भगवतीसूत्र में मृगावती जयंतिने जिनपूजा की है। ४-श्रीपाल चरित्र में मदनमञ्जूषा श्रादि स्त्रियोंने प्रभु
पूजा और अंगीरचना की है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com