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दबाइ हुइ नहीं रह सकती । तोसरा-बिजली के अन्दर जो अग्नि है वह एकेन्दिय होने के कारण उस के वचन भी नहीं है । इस हालत में वह दादाजी को वचन कैसे दे सकी ? शायद जिनदत्तसूरिने उस बिजलो ( अग्नि ) में किसी भूत प्रवेश कर के वचन ले लिया हो तो बात दूसरो है।
खरतर लोग जिनदत्तसूरि को युगप्रधान बतलाते हैं फिर जिनदत्तसूरि के इतना पक्षपात क्यों ? जो बिजली के पास वचन केवल खरतरगच्छ के लिए ही लिया । क्या अखिल जैनों के लिए बचन लेना दादाजीने ठीक नहीं समझा था ? । पक्षपात का एक उदाहरण और भी मिलता है जो योगिनियों के पास सात वरदान लिये उसमें एक वह भो वरदान है कि खरतर श्रावक सिन्ध देश में जायँगे तो ये निर्धन नहीं होंगे । क्या युगप्रधान का ये ही लक्षण हुआ करता हैं ? । अपने गच्छ के अलावा दूसरे जनोंपर विजली गिरे या वे निर्धन हों इसकी युगप्रधानों को परवाह ही नहीं। वास्तव में जैसे गायवाली घटना यतियोंने दादाजी की महिमा बढ़ाने को गढलो है, वैसे ही बिजली की कल्पित कथा भी गढ़ डाली है । यदि ऐसा न होता तो कुच्छ वर्षों पूर्व जब खरतरगच्छीय कृपाचन्दजी मालवा में रतलाम के पास एक ग्राम में प्रतिक्रमण कर रहे थे उस समय जोर से विजली गिरी जिस से २-३ श्रावकों को बड़ा भारी नुकशान हुआ तो क्या कृपाचन्द्रजी खरतर गच्छ के नहीं थे ? या बिजली अपना वचन भूल गई थी । खरतरों ! ऐसी झूठ मूठ बातों से तुम अपने आचार्यों की शोभा बढ़ानी चाहते हो, पर याद रक्खो तुम्हारी इस धांधली से ऊल्टी हंसी ही होती है। क्या दादाजी के किसी जीवन में ऐसी असत्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com