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(१) युगप्रधान उत्सूत्र की प्ररूपणा नहीं करते हैं किन्तु जिनदत्तसूरिने पाटण नगर में यह प्ररूपणा की थी कि स्त्री जिनपूजा नहीं कर सके । इस से जिनदत्तसूरि को अर्द्ध ढूंढिया कहा जा सकता हैं, क्यों कि ढूंढियोंने पुरुष और स्त्रियें दोनों को जिनपूजा का निषेध किया हैं और जिनदत्तसूरिने एक स्त्रियों को हो प्रभुपूजा का निषेध किया । किन्तु शास्त्रों में विधान है कि द्रौपदी, मृगावती, जयन्ति, प्रभावती, चेलना प्रादि स्त्रियोंने प्रभुपूजा की हैं और इस शास्त्राज्ञा को जिनदत्तसूरि के गुरुतक भी मानते आए थे । केवल जिनदत्तसूरिने ही "स्त्री जिनपूजा न करे" ऐसा कह कर जिनाज्ञा का भंग किया। अर्थात् उत्सूत्र की प्ररूपणा की। क्या ऐसे जिनाज्ञाभञ्जक को हो युगप्रधान कहते हैं ? ।
(२) युगप्रधान उत्सूत्रप्ररूपकों का पक्ष नहीं करते हैं तब जिनदत्तसूरिने छ कल्याणक प्ररूपक जिनवल्लभसूरि का पक्ष कर खुदने भी भगवान् महावीर के छः कल्याणक की प्ररूपणा कर कई भद्रिक जैन लोगों को सन्मार्ग से पतित बनाया। क्या ऐसे उत्सूत्रप्ररूपक भो युगप्रधान हो सकते हैं ?
(३) युगप्रधान किसी को शाप नहीं देते हैं तब जिनदत्तसूरिने पाटण के अंबड श्रावक को शाप दिया कि जा ! तूं निर्धन एवं दुःखी होगा ( देखो दादाजी की पूजा में )
(४) युगप्रधान की आज्ञा सकल संघ शिरोधार्य करते हैं तब चन्द व्यक्तियों के सिवाय जैन संघ जिनदत्तसूरि को उत्सूत्रप्ररूपक मानते थे ।
(५) युगप्रधान आचार्यपद के लिए झगड़ा नहीं करते है किन्तु जिनवल्लभसूरि का देहान्त के वाद जिनदत्तसूरि और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com