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पुस्तक इस विषय की प्रकाशित करवा दी है। उसमें अकाट्य ऐतिहासिक और खास खरतरों के ग्रन्थों के ही प्रमाणों से यह सिद्ध करदिया है कि खरतर शब्द जिनेश्वरसूरि से नहीं पर जिनदत्तसूरि की प्रकृति से हो पैदा हुआ है और यह प्रारंभ में अपमानसूचक होने के कारण खरतरोंने उसे कइ वर्षों तक नहीं अपनाया । इसकी साबूती के लिए मैंने खरतराचार्यो के कई शिलालेख भी दिये हैं और बताया है कि खरतर शब्द आमतौर पर जिनकुशलसूरि के समय में ही काम में लिया गया है।
यदि किसी भाई को इस बातका निर्णय करना हो तो खरतरगच्छोत्पत्ति नामक पुस्तक को मंगवाकर पढ़ना चाहिए।
दीवार नम्बर ३ . कई लोग आचार्य जिनदत्तमुरि को युगप्रधान कहा करते हैं तो क्या आचार्य जिनदत्तमूरि युगप्रधान थे ?
__ समीक्षा युगप्रधानों की नामावली में जिनदत्तसूरि का नाम नहीं है, पर गच्छराग के कारण कई लोग अपने २ आचार्यो को युगप्रधान लिख देते हैं। इस समय युगप्रधान दो कोटि के समझे जाते हैं:
१-नाम युगप्रधान और २-गुण युगप्रधान, यदि जिनदत्तसूरि नाम युगप्रधान हो तो इस में विवाद को स्थान नहीं मिलता हैं और उनकी कीमत भी कृपाचन्द्रसूरि आदि से अधिक नहीं हो सकती हैं । दूसरा गुण युगप्रधान के लिए युगप्रधान के गुण होना चाहिए वे जिनहससूरि में नहीं थे; क्यों कि
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