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शास्त्रार्थ किया होगा ?; क्योंकि वर्धमानसरिने जब आबू के मन्दिरों की प्रतिष्ठा करवाई थी तब तो दुर्लभ राजा का देहान्त हुए को दश वर्ष हो चुके थे तो क्या शास्त्रार्थ के समय फिर दुर्लभ राजा भूत होके दश वर्षों से वापिस आया था ? जोकि उनके अधिनायकत्व में जिनेश्वरसूरिने शास्त्रार्थ कर खरतर विरुद्ध प्राप्त किया । जरा इस बात को पहिले सोचना चाहिये।
(२) शास्त्रार्थ कूपुरा गच्छवालों के साथ हुआ तव यति रामलालजी आदि खरतरों का यह कहना तो बिलकुल मिथ्या ही है न ? कि खरा रहा सो खरतरा और हारा सो कवला । कारण कूर्चपुरागच्छ को कोई कवलानहों कहते हैं। कवला तो उपकेशगच्छवालों को ही कहते हैं। शास्त्रार्थ वताना कूर्चपुरागच्छके साथ और हार बतलानी उपकेशगच्छवालों की। ऐसा अनूठा न्याय खरतरों के अलावा किस का हो सकता है ? । शायद ! यति रामलालजी आदि को कोई दूसरा दर्द तो नहीं है क्यों कि बीकानेर में उपके रागच्छवालों के अधिकार में १४ गवाड़ ( मुहल्ले ) हैं तब खरतरो के ११ गवाड़ हैं और इन दोनों के आपस में कसाकसी चलती ही रहती है। संभव हैं इसी कारण खरतर यतियोंने यह युक्ति गढ़ निकालो हो कि खरतर का अर्थ खरा और कवलों का अर्थ हारा हुआ, पर उस समय यतियों को यह भान नहीं रहा कि आगे चल कर मुनि मग्नसागर जैसे खरतर साधु ही हमारी इस कल्पित युक्ति को ठुकरा देंगे ? जैसा कि हम पहिले लिख आए हैं।
(३) यदि हम मुनि मग्नसागरजी का कहना कुछ देर के लिये मान भी लें तो-राजा दुर्लभने तो इतना हो कहा किShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com