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________________ विजिजमाण ] करकंडचरिउ [ विसहर विजिजमाण-वीज्यमान III, I, 5. विप्फुरंत-वि+स्फुरत् I, 3, 3. विजु-विद्युत् VIII, 17, II. विप्फुरिअ-वि+स्कुरित III, 16, 9. विजुप्पह-विद्युत्प्रभा, न. II, 2, 5; 'भ, पु. विबुह-विवुध X, 28, 6. II, 2, 6. विभम-विभ्रम IX, II, 2. विजलवंत-विद्युत्+मत् V, 7, 6. विभत्ति-विभक्ति X, 14, 4. विटि-वृष्टि IV, 9, 6. वियक्खण-विचक्षण VII, II, I2. विट्ठ-विष्णु VII, 7,3. वियप्पिअ-विकाल्पत I, I4, 12. विडअ-विटप II, 7, 9. वियरंत-विचरत् II, 19, 4. विडवि-विटपिन् IX, 19, 5. वियसिय-विकसित IV, 7, 6. विडंबिअ-विडंबित II, 9, 10, वियंभिअ-विजृम्भित I, 14, I0. विणअ-विनय I, 2, I0. वियाण-वि+ज्ञा °णेवि VIII, 15, IO. विडिय-वि+वञ्चित I, 6, 3. (see णडिय). वियार-विचार (वृत्तान्त ) III, 5, 5. विणामिय-वि+नामित VI, 6, I. वियार-विचार V, 6, 7. विणास-विनाश I, I, I. वियार-वि+दार रिवि IV, 5, I. विणासयर-विनाशकर IX, I8, 9. वियाल-विकाल (अन्त ) II, 8, 5. विणिग्गअ-विनिर्गत II, 20, 3. विरइ-विरति IX, 6, 4 विणिम्मिअ-विनिर्मित II, 2, 3. विरइय-विरचित II, 9, 3. विणीअ-विनीत VIII, 4, 2. विरत्त-विरक्त VI, 9, 5. विणीसरीय-विनिःसृता IV, 15, I. विरम-विराम IX, 22, 9 विणु-विना III, II, I. विरहग्गि-विरह+अग्नि III, 7, 2. विण्णडिअ-(see विणहिय) II, 16, 5. विराअ-विराग IV, I2, 8. विरेइअ-विरेचित II, 20, 9. विण्णि -द्वि II, I2, I (Hem. III, I20). विण्हु-विष्णु VII, 9, 3 ( Hem. II, 75). विलक्खी-पिलक्षी VI, 12, 6. वित्त-वित्त II, 12, 8. विलय-(तत्सम) I, I, 2. वित्त-वृत VII, 4, I0. विलित्त-विलिप्त II, 7, 7. विवजिअ-विवर्जित IX, IO, I0. वित्ति-वृत्ति III, 2, 5. विवणम्मण-विवर्ण+मगाः VI, 12, I. वित्थड-विस्तर ( विस्तीर्ण) VIII, 2, +, विवरीअ-विपरीत II, I3. 3. वित्थरिअ-विस्तृत VII, 5, II. विवरीसर-वि+परि+सइ V, 7, 6. वित्थारिय-विस्तारित VI, I, 9. विविह-विविध IV, 7, 6. वित्थिण्ण-विस्तीर्ण I, 3, 3. विसज-वि+पृज् °F IX, 23, 8. विदमण-वि+दमन IX, 18, 5. विसजिअ-विसर्जित VII, 8, 7. विदाणिय-विदीर्ण I, I0, 3. विसण्ण-विषण्ण II, 3, 4. विदावण-विद्रावण II, I9, 4. विसमिय-विषमित X, 14, 4. विपाअ-विपाक X, 12, 8. विसय-विषय IX, 18, I. विप्प-विप्र II, I0, 4. विसयासत्त-विषयासक्त IX, 4, I0. विप्फार-विस्फार °२वि X, 8, 2, विसहर-विषधर V, I8, 2. - २२८ - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034918
Book TitleKarkanda Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKankamar Muni
PublisherKaranja Jain Publication
Publication Year1934
Total Pages364
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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