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________________ ग्रंथ परिचय 'करकंडचरिउ ' के दर्शन मुझे प्रथम बार सन १९.२४ में कारंजा के सन गण भंडार में हुए थे। तदनुसार ग्रंथ का कुछ परिचय सन् १९२६ में मध्यप्रांतीय सरकार द्वारा प्रकाशित संस्कृत-प्राकृत हस्तलिखित ग्रंथों की सूची में दिया गया था। खोज करने पर इसी ग्रंथ की पांच और भी प्रतियां मुझे देखने को मिलीं । इन सब प्रनिया का माम अवलोकन कर प्रस्तुत संस्करण नैयार किया गया है। ग्रन्थकार इस ग्रंथ के कर्ता मुनि कनकामर हैं। उन्होंने अपना नाम ग्रन्थ की प्रत्येक सन्धि के अन्त में अंकित कर दिया है । प्रारम्भ में उन्होने अपने गुरु का पंडित मंगलदेव नाम बतलाया है और अन्तिम प्रशस्ति में उन्हे ही बुध मंगलदेव कहा है। विशेष हाल तो इन मंगलदेव का ज्ञात नहीं हो सका किन्तु सम्भवतः ये वेही बुध मंगल हैं जिनका बनाया हुआ धर्मरत्नाकार नामक ग्रन्थ मिलता है। इस ग्रंथ की एक प्रति कारंजा के वलात्कार गण मंदिर में है। अन्तिम प्रशस्ति में कर्ता ने अपना कुछ और भी परिचय देने की कृपा की है। उन्होने कहा है कि वे ब्राह्मण वंश के चन्द्र ऋषि गोत्र में उत्पन्न हुए थे और वैराग्य लेकर वे दिगम्बर मुनि होगये। तब से उनका नाम कनकामर मुनि प्रसिद्ध हुआ। वे भ्रमण करते हुए 'आसाइय नगरी में पहुंचे और यहीं रहकर उन्होने प्रस्तुत ग्रंथ की रचना की। इस रचना को उन्होने जिन सज्जन के अनुराग से प्रकाशित किया वे एक बड़े योग्य, व्यवहार कुशल, धर्मात्मा पुरुष थे। वे विजयपाल नरेश के स्नेहभाजन तथा उनके मुखदर्पणवत् थे, उन्होने भूवाल नरेश का मन मोह लिया था, तथा वे कर्ण नरेन्द्र के चित्त का मनोरंजन किया करते थे। उनके तीन पुत्र थे, आहुल, रल्हो और गहुल । ये तीनो कनकामरजी के चरणों में अनुरक्त थे। __ अपने भक्त श्रावक का इतना परिचय देने परभी, खेद है, कनी ने उनका नाम नही बतलाया और न अपने ग्रंथ के निर्माण का समय ही अंकित किया । इस ग्रंथ की प्राप्त हस्तलिखित प्रतियों में से दो में उनके लिखने का समय दिया गया है, एक संवत् १५५८ अर्थात् सन् १५०२ की लिखी हुई है और दुसरी संवत् १५९७ अर्थात् पहली से ३९ वर्ष पश्चात् । इससे यह निश्चय है कि ग्रंथ १५०२ से पूर्व बन चुका था । ग्रंथकार ने अपने ग्रंथ में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034918
Book TitleKarkanda Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKankamar Muni
PublisherKaranja Jain Publication
Publication Year1934
Total Pages364
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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