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(३३) पैदा हुआ कि होली के दिन जब कि हमारे नगर में रंग उड़ाने के साथ साथ धूलि आदि भी उड़ाने की प्रथा है और इससे यह पवित्र दिन अपवित्र बनकर रह जाते हैं और होली के अन्तिम दो तीन दिन तो कारोबार भी लगभग बन्द सा ही रहता है, क्यों न यह दो चार दिन कांगड़ा की पुण्य भूमि में गुजारे जायें इससे जहाँ कांगड़ा के सौंदर्यपूर्ण प्राकृतिक दृश्यों से और वहाँ के जलवायु से मनोरञ्जन हो सकेगा वहाँ अपने प्राचीन पवित्र तीर्थ और भगवान् श्री आदिनाथ की मनोहर मूर्ति के दर्शन पूजन से आत्मिक अानन्द की प्राप्ति का लाभ भी मिल सकेगा। इन शुभ विचारों के साथ सब ने एक मन हो कर कांगड़ा तीर्थ की यात्रा के लिये जाने का निश्चय कर लिया और सन् १६४७ फाल्गुण शुदि त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णमाशी की यात्रा बड़े आनन्द और उत्साह से की । इस वर्ष १३ प्रेमी इस पहिले तीर्थयात्रासंघ में सम्मिलित हुए।
तीर्थ यात्रा से उन्हें इतना आनन्द प्राप्त हुआ कि उन्होंने प्रतिवर्ष होली के दिनों में यात्रा के लिये कांगड़ा जाने का निश्चय कर लिया
और इसी विचार के अनुसार दूसरे वर्ष भी इन्हीं दिनों में यात्रा के लिये कांगड़ा गये और सन् १६४८ की यात्रा का आनन्द लूटा। इस वर्ष यात्री-संख्या ११ थी।
इसके बाद सन्.१६४६ आया और होली के दिन भी समीप आने लगे। फिर सभी प्रेमी सजन इकट्ठहुए । इस वर्ष उनके उत्साह में एक विशेष जागृति पैदा हुई । उन्होंने सोचा कि हम तो तीर्थयात्रा का आनन्द उठायेंगे ही क्यों न बाकी नगरों के भाईयों को भी इस शुभ अवसर से लाभ दिलाने का सौभाग्य प्राप्त करें। यह भाव सभी को प्रिय लगे और उन्होंने पंजाब के सभी नगरों में विज्ञापन भेजकर उन्हें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com