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________________ ६० ] [ जवाहर - किरणावली रात में कभी पानी की एक बूंद भी नहीं लेते थे, तिस पर भी दिन का सूर्य की प्रतापना लेते और रात्रि में वीरासन से खड़े रहते थे । भगवान् ने अपने अनुयायियों को तपस्या का मार्ग सिखलाने के निमित्त इतना उग्र तप किया था । भगवान् इतना तप न करते तो ऐसे कुसमय में, नाना प्रकार की प्रतिकूल और भीषण परिस्थितियों में उनका धर्म स्थिर कैसे रहता ? श्राज न्याय की तराजू पर एक ओर जैनियों की तपस्या रक्खो और दूसरी ओर सारे संसार की तपस्या रक्खो । जैनों की संख्या कम होने पर भी देखो कि जैनियों की तपस्या की बराबरी क्या सारे संसार की तपस्या मिल कर भी कर सकती है ? भारत बीच में भूल कर अब तप की महिमा और हिंसा की शक्ति को फिर समझ रहा है । वह महावीर भगवान् के सिद्धान्तों की ओर झुक रहा है । दूसरे को कष्ट न देकर स्वयं कष्ट सह लेना, अनशन करना, यह भावना महावीर स्वामी के सिद्धान्त की है और भारत ने इस भावना का अनुसरण किया है। गांधीजी ने जैनधर्मानुयायी कवि राजन्रन्द भाई को अपना धर्मविषयक गुरुमाना है। गांधीजी कभी के ईसाई बन गये होते पर संयोगवश उन्हें राजबन्द्र भाई मिल गये । गज'चन्द्र भाई से उन्होंने कुछ प्रश्न किये । गांधीजी का संतोष ईसाई होने से बच www.umaragyanbhandar.com जनक उत्तर मित्र तथा । इस कारण वे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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