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________________ [जवाहर-किरणावली दिया है । पाल-पोसकर बड़ा किया है। जरा इस बात पर विचार तो कर बेटा! बेटा नयी रोशनी का था। उसने कहा-फिजूल बड़बड़ मत कर । तू जन्म देने वाली है कौन ? में नहीं था तब तू रोती थी और बांझ कहलाती थी। मैंने जन्म लिया तब तेरे यहाँ बाजे बजे और मेरी बदौलत संसार में पूछ होने लगी। नहीं तो बांझ समझकर कोई तुम्हारा मुँह भी देखना पसंद नहीं करता था। फिर मेरे इस कोमल शरीर को तुमने अपना खिलौना बनाया। इससे अपना मनोरंजन किया-लाइप्यार करके आनन्द उठाया। इस पर भी उपकार जतलाती हो ! माता ने कहा-मैं ने तुझे पेट में रक्खा सो ? बेटा-तूने जान-बूझकर मुझे पेट में थोड़े ही रक्खा था ! तुम अपने सुख के लिए प्रयत्न करती थी, बीच में हम रह गये ! इसमें तुम्हारा उपकार ही क्या है ? फिर भी अगर उपकार जतलाती हो तो पेट में रहने देने का किराया ले लो! यह आज की सभ्यता है ! भारतीय संस्कृति आज पश्चिमी सभ्यता का शिकार बनी जा रही है और भारतीय जनता अपनी पूंजी को नष्ट कर रही है। माता ने कहा-कोठरी की तरह तू मेरे पेट का भाड़ा देने को तैयार है, पर मैं ने तुझे अपना दूध भी तो पिलाया है ! बेटा-हम दूध न पीते तो तू मर जाती ! तेरे स्तन फटने लगते । अनेक बीमारियाँ हो जाती । मैं ने दृध पीकर तुझे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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