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[जवाहर-किरणावली
चौड़ी दरी को समेट कर उस पर एक ही आदमी बैठ जाय और दूसरे को नहीं बैठने दे तो क्या उसका बड़प्पन समझा जाएगा? बड़प्पन तो औरों को बिठलाने में है।
काली रानी कहती है-'मेरे गले में वह अन्न कैसे उतरा जिसके लिए अनेक मनुष्यों को कष्ट में पड़ना पड़ा ।'
इस राजसत्ता ने कैसे-कैसे अनर्थ किये हैं ! जब मनुष्य स्वार्थ के वशीभूत हो जाता है उसे न्याय-अन्याय, धर्मअधर्म कुछ नहीं सूझता। एक हार और हाथी के लिए एक करोड़ अस्सी लाख मनुष्यों का घमासान हो गया ! लड़ाई तो अपनी मौज के लिए करें और नाम प्रजा की रक्षा का हो!
महासती महासेन कृष्णा एक आंबिल एक उपवास, इस प्रकार क्रमशः आंबिल करती-करती सौ आंबिल तक चढ़ गई। चौदह वर्ष, तीन मास और बीस दिन में उन्होंने अपना शरीर सुखा डाला।
काली महासती राजरानी थीं। साध्वी के वेश में जब के लोगों के घर शिक्षा के लिए जाती होंगी, तब लोगों में त्याग के प्रति कितनी स्पृहा होती होगी? लोग त्याग के प्रति कितनी आदरभावना अनुभव करते होंगे? एक राजरानी राजसी वैभव को ठुकरा कर, भोगोपभोगों से मुँह मोड़कर, वस्त्रों और प्राभूषणों को छोड़कर जब साध्वी का वेष अंगीकार करती है, तो संसार को न मालूम कितना उच्च और महान् आदर्श सिखलाती है !
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