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________________ बीकानेर के व्याख्यान ] [४३ जाता है कि उसके नाम का पीपल आज भी सीलोन में विद्यमान है। ऐसी साध्वियाँ जब संसार में घूम-घूम कर जनता को जागृत करती होंगी, तब भारत में और भारत के प्रति दुसरे देशों में किस प्रकार की भावना उत्पन्न होती होगी, यह कौन कह सकता है ! सचमुच भारतीय इतिहास का वह स्वर्णकाल अनूठा था ! एक राजरानी स्वेच्छा पूर्वक वैभव को लात मार कर भिक्षुणी बनती और घर-घर फिरती है ! जीवन के किसी अभाव ने उसे भिक्षुणी बनने को बाध्य नहीं किया था । किसी अपूर्व अन्तःप्रेरणा से प्रेरित होकर ही उन्होंने ऐसा किया था । और ऐसा करके वे क्या दुःखी थी ? नहीं । भोगों में अतृप्ति थी, त्याग में तृप्ति थी । भोगों में असंतोष, ईर्पा और कलह के कीटाणु छिपे थे, त्याग में संतोष की शांति थी, निराकुलता का अद्भुत प्रानन्द था, आत्मरमण की स्पृहणीयता थी। इसी सुख का अनुभव करती हुई वह भिक्षुणियाँ अपने जीवन को दिव्य मानती थीं। उनका त्याग महान् था। आप कितने भाग्यशाली हैं कि यह महान आदर्श आपके सामने उपस्थित है। आप पूर्ण रूप से अगर इस आदर्श पर नहीं चल सकते तो भी उसी ओर कदम तो बढ़ा सकते हैं ! कम से कम विपरीत दिशा में तो न जाएँ ! मगर श्राप इस ओर कितना लक्ष्य देते हैं ? आपसे तो अभी तक बारीक वस्त्रों का भी मोह नहीं छूट सकता । इन वस्त्रों के लिए चाहे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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