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मंगल-पर्व ।
-::():::-- पर्युषण पर्व जैनों के लिए महाकल्याण का पवित्र पर्व है। आत्मा के असली स्वरूप को समझने के लिए, आत्मा में आई हुई विकृतियों को और उनके कारणों को हटाने के लिए और स्वाभाविक शुद्ध स्वरूप प्राप्त करने के लिए पर्युषण से बढ़कर दूसरा अवसर कौन हो सकता है ? पर्युषण के दिनों में दुष्कर्मों की आहुति दी जाती है और अंतिम दिन-- संवत्सरी का दिन पूर्णाहुति का दिन है। अपने पापों को ध्यान में लेकर, ध्यानाग्नि के द्वारा पापों को जलाना ही पर्युपण पर्व का महान् संदेश है । जैनधर्म की आराधना का यह पवित्र दिन इतनी प्रभावशाली भावनाओं में व्यतीत होना चाहिए कि उन भावनाओं का असर जीवनव्यापी बन जायः कम से कम एक वर्ष तक तो उन भावनाओं का प्रभाव आत्मा पर रहना ही चाहिए।
संवत्सरी का दिन आयुबंध का सर्वश्रेष्ठ अवसर है।
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