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[ जवाहर-किरणावली
ऐसा करने वाले चमार को आप बुरा कह सकते हैं लेकिन
आप अपनी तरफ भी देखें । यह तुम्हारा मनुष्यशरीर जो ईश्वर को मिला था और जो समस्त शरीरों में उत्तम है, चन्दन के समान है। लेकिन यह चमार के घर पड़ा है। चमार के घर किस प्रकार पड़ा है, यह बात मैं भक्तों की ही वाणी में कहता हूँ। तुलसीदास जी कहते हैं
चतुराई चूल्हे पड़ो, धिक् धिक् पड़े अचार ।
तुलसी हरि के भजन विन, चारों वर्ण चमार । जो लोग ऊपर से चतुराई करते हैं; लेकिन जिनके हृदय में दया नहीं है-भक्ति नहीं है, जो ऊपरी प्राचार-विचार से ही ईश्वर को प्रसन्न करना चाहते हैं, ऐसे लोगों की गणना तुलसीदासजी चमार में ही करते हैं, चाहे वह किसी भी वर्ण
का हो। ____ कोई दूसरे को तो चाण्डाल कहते और घृणित समझते हैं, लेकिन स्वयं क्रोध करके चाण्डाल बनते हैं । उन्हें इसका पता ही नहीं होता! परमा-या ऊपर की चतुराई से कभी नहीं रीझता । मैं बाहरी आचार या चतुराई की बुराई नहीं करता, लेकिन अन्तःकरण की पवित्रता के अभाव में, लोकदिखावे के लिए किये जाने वाले याह्याचार से ईश्वर प्रसन्न नहीं हो सकता। अतएव अान्तरिक शुद्धता पर ध्यान देने की बड़ी आवश्यकता है।
तुलसीदासजी कहते हैं-जिसने ऊपरी चतुराई तो की, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com