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[जवाहर-किरणावली
ईश्वर की मूर्ति की कोई अवज्ञा करेगा?
'नहीं!'
तो यह मनुष्यशरीर ईश्वर की मूर्ति है, ऐसा समझकर मनुष्यों की अवहेलना या घृणा न करना ही सच्ची मूर्तिपूजा है।
परमात्मा की मूर्ति की अवहेलना किस प्रकार नहीं करना चाहिए, इसके लिए सर्वप्रथम तो प्राणातिपात का त्याग करना आवश्यक है । ऐसा करने से परमात्मा की आराधना होगी। क्योंकि मनुप्य परमात्मा की मूर्ति हैं, इसलिए इनकी हिंसा न करना, न कराना और न हिंसा का अनुमोदन करना चाहिए। ऐसा करके उस अहिंसा को परमात्मा के लिए समर्पित कर देने से ईश्वर की पूजा हो जायगी।
मनुष्य की हिंसा त्यागने के लिए कहा गया है सो इसका अर्थ यह नहीं समझना चाहिए कि अन्य प्राणियों की हिंसा त्याज्य नहीं है। हिंसा तो प्राणीमात्र की त्याज्य है। लेकिन मनुष्य, मनुष्य की विशेष और अन्य प्राणियों की सामान्य हिंसा करता है। इसी कारण यहाँ मनुष्यहिंसा के त्याग पर जोर दिया गया है। मनुष्य विशेष मूर्ति है और अन्य जीव सामान्य मूर्ति हैं। यों तो सभी शरीर मूर्ति ही हैं । भगवान् ने कहा है
पुढयीकायमहगो उक्कसं जीवो उ संवसे। .
कालं संखाईयं, समयं गोयम ! मा पमायए ।। हे गौतम ! हमारा-तुम्हारा यह जीव असंख्यात काल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com