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________________ [जवाहर-किरणावली वाद स्नेह की गंभीरता के साथ कहा-'देवी, शान्त होओ! - पति को प्राया जान महारानी ने उनका सत्कार किया। महाराज ने अतिशय संतोष और प्रेम के साथ कहा-समझ में नहीं आया कि तुम रानी हो या देवी ? तुम्हारी जितनी प्रशंसा की जाय, थोड़ी है। तुम्हारे होने से ही मेरा बड़प्पन है । तुम्हारी मौजूदगी से ही मेरा कल्याण--मंगल हुआ। तुमने देश में शांति का प्रसार करके प्रजा के और मेरे प्राणों की रक्षा की है। पति के मुख से अपनी अलंकारमय प्रशंसा सुनकर रानी कुछ लजित हुई । फिर रानी ने कहा-नाथ ! यह अलंकार मुझे शोभा नहीं देते । ये इतने भारी हैं कि मैं इनका बोझ नहीं उठा सकती। मुझमें इतनी शक्ति है कहाँ है, जितनी आप कह रहे हैं ? थोड़ी-सी शक्ति ही भी तो वह आपकी ही शक्ति है। काच की हंडी में दीपक रखने पर जो प्रकाश होता है वह काच की हंडी का नहीं, दीपक का ही है। इस लिए आपने प्रशंसा के जो अलंकार मुझे प्रदान किये हैं , उन्हें आभार के साथ मैं आपको ही समर्पित करती हूँ। आप ही इनके योग्य हैं । आप ही इन्हें धारण कीजिए । महाराज-रानी, यह भी तुम्हारा एक गुण है कि तुम्हें अपनी शक्ति की खबर ही नहीं! वास्तव में जो अपनी शक्ति का घमंड नहीं करता वही शक्तिमान होता है। जो शक्ति का अभिमान करता है उसमें शक्ति रहती ही नहीं ! बड़े-बड़े Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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