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________________ बीकानेर के व्याख्यान ] [३५५ ------ ---- - ---- प्राकृतिक पंखा अर्थात् पवन तो सभी के लिए समान है । इस में अानन्द की क्या बात है? आप उसी वस्तु में आनन्द मानते हैं जो सिर्फ आपके लिए ही हो, औरों के लिए न हो! ___अकृत्रिम पवन में जो गुण हैं वे क्या कृत्रिम पंखे के पवन में हो सकते हैं ? 'नहीं!' फिर भी आपनैसर्गिक पवन में आनन्द न मानकर कृत्रिम में आनन्द मानते हैं । आपने कभी सोचा है कि आपके हृदय की कौन-सी भावना इसमें कार्य कर रही है ? ऐसा करके आप संसार के कल्याण का परोक्ष रूप में विरोध करते हैं । स्मरण रखना चाहिए कि विश्व-कल्याण का विरोध न करने वाला ही परमात्मा को पहिचान सकता है। आपकी जीभ 'ईश्वरईश्वर' भले ही जपती हो परन्तु आपका हृदय ईश्वर को भूला हुआ है और मस्तिष्क ईश्वर के विरोधी कामों में उलझा हुआ हैं । हृदय और मस्तिष्क दोनों जब परमात्मा के आदेश को शिरोधार्य करते हैं तभी कल्याण होता है। हदय और मस्तिष्क का अन्तर समझ लेने की आवश्यकता है। हृदय के काम प्रायः जगत्-कल्याण के लिए होते हैं और मस्तिष्क के काम प्रायः जगत् के अकल्याण के लिए हुआ करते हैं। कपटाचार मस्तिष्क की उपज है, जिसमें दिखलाया कुछ जाता है और किया कुछ और जाता है ! यथाविजली के विषय में कहा तो यह जाता है कि लोगों के आराम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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