SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बीकानेर के व्याख्यान ] [ ३१६ इन्द्र की आशा रखता है । और चक्रवर्त्ती का आराध्य देवराज इन्द्र भी तेरी आराधना में ही अपनी कृतार्थता समझता है । और सब तो भौतिक लालसा से एक-दूसरे की सेवा करते हैं, परन्तु इन्द्र को भगवान् से क्या लालसा पूरी करनी है ? प्रमे ! इन्द्र किस आशा से तेरी सेवा करता है ? इन्द्र भगवान् की सेवा करता है, इस बात पर विचार करने से विदित होता है कि इन्द्र बन जाने पर भी और इन्द्र की सेवा करने पर भी आत्मा सनाथ नहीं हो सकता । इन्द्र स्वर्ग का स्वामी है, देवगण का राजा है, लोकोत्तर शक्तियों का निधान है, अनुपम वैभव उसे प्राप्त है, फिर भी वह - सनाथ नहीं है । जब इन्द्र की आयु पूर्ण हो जाती है और वह अपने पद से च्युत होता है तो उसे आधार देने वाला दूसरा कोई नहीं है । इन्द्राणी अपने स्वामी की रक्षा नहीं कर सकती । सामानिक देव, लोकपाल या आत्मरक्षक देव देखते रह जाते हैं, मगर इन्द्र को गिरने से नहीं बचा सकते। उस समय इन्द्र भी अनाथ हो जाता है। जो अपने कृपाकटाक्ष से एक दिन दूसरों को निहाल कर देता था, काल आने पर उसे कोई बचा नहीं सकता और न वह आप ही बच सकता है । इसी कारण इन्द्र भी कालविजेता परमात्मा की शरण में जाता है । परमात्मा की शरण ग्रहण करने के पश्चात् काल का जोर नहीं चलता । इस प्रकार इस विशाल विश्व में एक पर दूसरे की लत्ता + Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy